चीन का रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर कब्जा : भारत और दुनिया पर इसका असर
अमेरिका ने सोचा था कि वह टैरिफ और धमकियों से चीन को धमका देगा, लेकिन चीन (चीन का रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर कब्जा)
ने खेल ही बदल दिया। उसने उन ‘रेयर अर्थ एलिमेंट्स’ (REE) की सप्लाई पर प्रतिबंध लगाया, जो वर्तमान तकनीक पर पूरी दुनिया निर्भर है। कारों से लेकर फाइटर जेट्स तक का उत्पादन खतरे में पड़ा, इसलिए अमेरिका को झुकना पड़ा और चीन के साथ अच्छी तरह से व्यापारिक समझौते करने पड़े।
हम जानेंगे कि रेयर अर्थ एलिमेंट्स क्या हैं, चीन (चीन का रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर कब्जा) इन पर एकछत्र नियंत्रण क्यों रखता है, और कैसे यह अमेरिका सहित विश्व भर में एक “दुखती रग” बन गए हैं।
क्या हैं रेयर अर्थ एलिमेंट्स और चीन ने इन पर पाबंदी क्यों लगाई?
पृथ्वी की सबसे बाहरी परत में पाए जाने वाले 17 दुर्लभ धात्विक तत्वों को रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REE) कहा जाता है। ये आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स, सैन्य उपकरण, इलेक्ट्रिक वाहन और कई अन्य नवीनतम उपकरणों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
चीन की कॉमर्स मिनिस्ट्री ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के निर्णय का पालन करते हुए 145% तक टैरिफ लगाया। चीन ने 17 प्रमुख रेयर अर्थ एलिमेंट्स में से 7 के निर्यात पर कड़े प्रतिबंध लगाए।
7 REE हैं:
(चीन का रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर कब्जा)
दुनिया भर में REE की सप्लाई कम हो गई है, क्योंकि
दुर्लभ मृदा तत्व (REE) उपयोग
सैमरियम (Samarium) हेडफोन, न्यूक्लियर रिएक्टर, हथियारों के लिए सैमरियम- कोबाल्ट चुंबक
गैडोलीनियम (Gadolinium) MRI मशीन, न्यूक्लियर रिएक्टर, रडार सिस्टम
टेरबियम (Terbium) LED स्क्रीन, लाइटिंग, नेवी के सेंसर, हाई-टेम्परेचर चुंबक
डिस्प्रोसियम (Dysprosium) आयरन-बोरॉन चुंबक, जनरेटर, न्यूक्लियर रिएक्टर, हार्ड डिस्क ड्राइव
ल्यूटेटियम (Lutetium) पेट्रोलियम रिफाइनरी, कैंसर स्कैनिंग, मेमोरी डिवाइसेज, इलेक्ट्रॉनिक्स
स्कैंडियम (Scandium) एलॉय मैन्यूफैक्चरिंग, स्पोर्ट्स साइकिल फ्रेम, एयरोस्पेस टूल्स
यिट्रियम (Yttrium) रडार सिस्टम, सुपरकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स, कैमरा लेंस
सैमरियम ,गैडोलीनियम ,टेरबियम ,डिस्प्रोसियम, ल्यूटेटियम ,स्कैंडियम ,यिट्रियम , को चीन से निकालने वाली कंपनियों को स्पेशल एक्सपोर्ट लाइसेंस लेना होगा।
REE पर चीन का एकाधिकार क्यों?(चीन का रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर कब्जा)
चीन विश्व भर में लगभग 440 लाख मीट्रिक टन REE भंडार का 49% है, जो उसे इस क्षेत्र में सबसे बड़ा दावेदार बनाता है। 220 लाख मीट्रिक टन से दूसरे स्थान पर वियतनाम है। REE के भंडार दुनिया भर में उपलब्ध हैं, लेकिन इन्हें जमीन से निकालना और रिफाइन करना अत्यंत कठिन और पर्यावरण के लिए घातक है।(
चीन का 2.7 लाख मीट्रिक टन (61% विश्व REE उत्पादन) सालाना उत्पादन है। यह भी महत्वपूर्ण है कि चीन दुनिया का 90% REE रिफाइन करता है। यह अत्याधुनिक रिफाइनिंग तकनीक और उत्पादन में चीन की असली ताकत है,
भारत में भी आंध्र प्रदेश और केरल जैसे तटीय राज्यों में REE मिलता है. हालांकि, हमारे पास केवल 69 लाख टन का भंडार है और हमारा उत्पादन दुनिया के कुल उत्पादन का 1% से भी कम है। REE को उपयोग के लायक बनाने के लिए उसके अयस्क को कई केमिकल्स का उपयोग करके रेडियोएक्टिव तत्वों को अलग करना होता है। यह प्रक्रिया महंगी, कठिन और दुर्लभ है।
अमेरिका पर चीन की पाबंदी का क्या प्रभाव होगा?
चीन ने सात REE के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगाया है,(चीन का रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर कब्जा) जो रणनीतिक क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक मशीनों, हथियारों, कारों, फाइटर जेट्स और पनडुब्बियों का उपयोग करते हैं। सैमरियम अमेरिका के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। कोबाल्ट के साथ मिलकर यह बहुत मजबूत मैग्नेट बनाता है, जो रक्षा क्षेत्र में उपयोग किया जाता है।
कि सैमरियम से मैग्नेट बनाकर कोई चीनी कंपनी सीधे अमेरिका को नहीं बेच सकेगी।
सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज ने जारी की एक रिपोर्ट में कहा:
अमेरिकी F-35 फाइटर जेट करीब 23 किलो सैमरियम का उत्पादन करता है।
DDG-51 डिस्ट्रॉयर जहाज बनाने में 2300 kg REE की आवश्यकता होती है।
4,173 किलो REE एक वर्जीनिया वर्ग की पनडुब्बी में उपयोग किया जाता है।
अमेरिका को फाइटर जेट्स और पनडुब्बियों के अलावा REE की भी जरूरत है, जो चीन पर लगभग पूरी तरह निर्भर है, साथ ही टॉमहॉक मिसाइल, विभिन्न प्रकार के बम, रडार सिस्टम आदि बनाने के लिए भी। ऑस्ट्रेलिया में आयरन ओर रिसर्च के डायरेक्टर फिलिप किर्चलेचनर ने कहा, “अमेरिका और यूरोप ने हाल के दशकों में रेयर अर्थ एलिमेंट्स का महत्व पहचानने में बड़ी चूक कर दी है, जबकि चीन ने तेजी से इनकी रिफाइनिंग पर अपनी मोनोपॉली कायम कर ली है”। चीन ने संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय सुरक्षा प्रणाली को घायल कर दिया है। “
चीन के एकाधिकार के खिलाफ यूएस क्या कर रहा है?
अमेरिका REE की सप्लाई चेन को 2024 से शुरू करने का लक्ष्य बना रहा है। ‘MP Materials’ जैसी कंपनियों को इसके लिए सरकार ने करोड़ों रुपये दिए हैं। हालाँकि, 2018 में चीन ने 1.38 लाख टन नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन मैग्नेट का उत्पादन किया था, इसलिए 2025 के अंत तक यह कंपनी सिर्फ 1000 टन उत्पादन कर पाएगी।(चीन का रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर कब्जा)
अमेरिका ने एक और कंपनी, “लिनास रेयर अर्थ” को REE उत्पादन के लिए 150 मिलियन डॉलर दिए थे, लेकिन अब तक उसने कोई उत्पादन नहीं किया है। कुल मिलाकर, चीन अभी भी REE पर काफी हद तक निर्भर है।(चीन का रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर कब्जा)
लंदन में दोनों देशों के अधिकारियों ने चीन के एक्सपोर्ट बैन और अमेरिका के टैरिफ को कम करने पर सहमति बनाई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि चीन अमेरिकी कंपनियों को रेयर अर्थ मटेरियल देगा, जिसके बदले चीनी छात्रों को अमेरिकी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में पढ़ाई करने की अनुमति मिलेगी। इसके बावजूद, इस समझौते का व्यापक अर्थ अभी भी स्पष्ट नहीं है।
चीन के REE प्रतिबंध का भारत पर क्या प्रभाव होगा?
चीन से REE का आयात 2019-20 में 1,848 टन से 2019-20 में 2,270 टन हो गया है। चीन की इस कार्रवाई से भारत की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री सबसे अधिक प्रभावित होगी, खासकर इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन पर। (चीन का रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर कब्जा)
Bazaar Automobile जैसी कंपनियों ने चिंता व्यक्त की है कि अगर जल्द लाइसेंस नहीं मिले तो जुलाई से भारत में उत्पादन प्रभावित हो सकता है। क्रिसिल रेटिंग्स के डायरेक्टर अनुज सेठी ने कहा कि ऑटोमोबाइल सेक्टर के पास रेयर अर्थ मैग्नेट का स्टॉक चार से छह महीने का है। मारुति सुजुकी ने अपनी पहली इलेक्ट्रिक कार ई-विटारा का उत्पादन पहले ही कम कर दिया है।(चीन का रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर कब्जा)
भारत में भी सेमीकंडक्टर, सोलर पैनल और फाइबर ऑप्टिकल केबल बनाने में REE जैसे जर्मेनियम का उपयोग होता है। चीन की पाबंदी इन क्षेत्रों पर भी पड़ेगी।(चीन का रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर कब्जा)
क्या भारत और पूरी दुनिया के पास कोई दूसरा रास्ता है?
प्रकृति में मिलाकर कई खतरनाक रेडियोएक्टिव तत्वों से बने रहस्यमय अर्थ एलिमेंट्स मिलते हैं। इनकी रिफाइनिंग बहुत कठिन, खर्चीला और खतरनाक है। चीन ने पिछले 30 वर्षों में REE की पूरी सप्लाई चेन (खदान से लेकर प्रोसेसिंग और रिफाइनिंग) विकसित की है और अपनी तकनीक दूसरों से नहीं बाँटती। अमेरिकी “MP मटेरियल्स” को भी प्रारंभिक प्रक्रिया के लिए चीन भेजना होगा।
चीन से निपटने के लिए अब कई देश REE को बड़े पैमाने पर रिफाइन कर रहे हैं। (चीन का रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर कब्जा) चीन के बाद दुनिया का लगभग आधा REE रिजर्व म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और भारत में है।
ऑस्ट्रेलिया ने आवश्यक खनिज संग्रहालय के लिए 6.6 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की घोषणा की है, जिसे वह और उसके ट्रेडिंग पार्टनर उपयोग कर सकेंगे। CSIS के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया 2026 तक सिर्फ चीन पर निर्भर रहेगा।
अमेरिका REE उत्पादन को बढ़ाने के लिए फंडिंग, सार्वजनिक-निजी भागीदारी और नई खदानें खोलने पर काम कर रहा है।
ब्रिटेन REE को रीसाइक्लिंग और उत्पादन करने के लिए अध्ययन कर रहा है और 2027 तक फ्रांस में REE को बनाने की योजना बना रहा है।
फैराइट मैग्नेट को चीन से रीसायकल होकर आने वाले REE पर निर्भरता कम करने के लिए REE के स्थान पर देखा जा रहा है, क्योंकि ये सस्ते होते हैं और उनका उत्पादन आसान है। अब कंपनियां इन मैग्नेट पर अधिक निवेश कर रही हैं और REE पर निर्भरता कम करने के लिए उन्नत मोटर बनाने की कोशिश कर रही हैं।
भारत की REE सप्लाई की कोशिश भारत तीन प्रमुख मोर्चों पर काम कर रहा है: (चीन का रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर कब्जा)
भारत और चीन की बातचीत: वाहन उद्योग की आवश्यकताओं को देखते हुए, सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स ने भारत सरकार से चीन से जल्द ही इस विषय पर चर्चा करने की अपील की है। जर्मनी में वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने REE एक्सपोर्ट पर बातचीत की पुष्टि की है।
भारत में REE उत्पादन में वृद्धि: भारत में विश्व का पांचवां सबसे बड़ा REE भंडार (69 लाख मीट्रिक टन) होने के बावजूद, हमारा उत्पादन 1% से भी कम है। पीयूष गोयल ने कहा कि भारत सरकार निजी कंपनियों के साथ मिलकर चीन पर निर्भरता कम करने के लिए देश में REE उत्पादन को बढ़ावा देना चाहती है। (चीन का रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर कब्जा)हालाँकि शुरूआत में चुनौतियां हैं,(चीन का रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर कब्जा) लंबे समय तक सफलता की उम्मीद है।
एशियाईदेशोंसेसहयोग: 6 जून को नई दिल्ली में हुई इंडिया–सेंट्रल एशिया डायलॉग की चौथी बैठक में भारत, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के बीच REE के एक्सप्लोरेशन के लिए मिलकर काम करने पर सहमति हुई है।(चीन का रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर कब्जा)